वो थका मुसाफिर था रहगुज़र बताती है।
बज़्म फ़रोगे अदब का 10वाँ तरही मुशायरा सम्पन्न हुआ।
उत्तर प्रदेश, लखीमपुर खीरी-: बज़्म फ़रोगे अदब की तरफ से तरही मुशायरे की कड़ी में 10वाँ तरही मुशायरा आयोजन किया गया। जिसमें “वो थका मुसाफिर था रहगुज़र बताती है” मिसरे पर शायरों ने अपने कलाम पेश किए। मुशायरे की सदारत बज़्म फ़रोगे अदब के सदर आमिर रज़ा ने की। निज़ामत इलियास चिश्ती ने किया। खीरी कस्बे के मोहल्ला शेखसराय स्थित मदरसा सुल्ताने हिंद में आयोजित मुशायरे में अपने अध्यक्षीय भाषण में आमिर रज़ा ने कहा पिछले 10 महीनों से यह जो सिलसिला चल रहा है इससे नए शायरों के बेहतर प्लेटफार्म मिल रहा है, यही नई पौध मुस्तकबिल में उर्दू अदब को नई पहचान देंगी। इस दौरान उन्होंने अपना कलाम कुछ इस अंदाज में सुनाया – इसलिए नहीं डरता मुश्किलों से मैं आमिर, मुझको मेरी मुश्किल ही रास्ता दिखाती है। इस मौके पर मेहमाने खुसूसी रहे मज़्मे उर्दू सीतापुर के कनविनर खुशतर रहमानी ने कुछ यूं कहा- पीठ पर बंधा बच्चा सिर पर है लदी ईंटें, यह कैसे रोज़ो शब मुफलिसी दिखाती है।
डॉ एखलाक हरगामी ने कुछ यूं कहा – मेरे गांव का मौसम अब भी है वहीं एखलाक, अब भी भी गांव में कोयल गीत गुनगुनाती है।
शहबाज़ हैरत चिश्ती ने कुछ यूं कहा – आप मेरे और उनके दरम्यान मत आएं, ये मामला मेरा और उनका ज़ाती है।।
उमर हनीफ ने पढ़ा – वो शिकार करती है बाम पर खड़ी होकर, आते जाते लोगों पर बिजलियां गिराती है।
नफीस सीतापुरी ने कुछ यूं पढ़ा – हाफ़िज़ा ज़रा देखो उस ज़हीन लड़की का, सबको याद रखती है मुझको भूल जाती है।
शोहरत अंसारी ने कुछ यूं पढ़ा – मां से बढ़के दुनियां में कोई हो नहीं सकता, पहले ख़ुद नहीं खाती बच्चों को खिलाती है।
नफ़ीस वारसी ने कुछ यूं कहा- कामयाब होती है कौम वो हक़ीक़त में, कौमियत की ख़ातिर जो अपने सर कटाती है।
अय्यूब अंसारी ने पढ़ा –
यूं लगे है नज़रों को जब वो मुस्कुराती है, जैसे सब्ज़ पत्तों पर ओस खिल खिलाती है।
सैफुल इस्लाम ने पढ़ा –
एक ख़ुमार छाता है हर तरफ फ़ज़ाओं में झूम कर ग़ज़ल मेरी जब वो गुनगुनाती है।
मो० आमीन ने पढ़ा- दोस्तो से पैसे का लेन देन मत करना,
इस अमल से रिश्तों की डोर टूट जाती है।
हसन अंसारी ने कहा -आज तक नहीं भूला वह हसीन सा चेहरा, वो मेरे तसव्वुर में रोज़ रोज़ आती है।
बज़्म के सेक्रेटरी डॉक्टर एराज अरमान ने कहा- काट दी ज़बा लेकिन फर्क क्या पड़ा ज़ालिम,मेरी बे ज़बानी अब दासतां सुनती है।
मुशायरे की निज़ामत कर रहे इलियास चिश्ती ने अपना कलाम कुछ इस अंदाज में पढ़ा-
मसाला न हल होगा क्योंकि जनता हूं मैं, वक्त जब मुखालिफ़ हो शह भी मात खाती है। इस मौके पर नफ़ीस सीतापुरी की किताब “गुले नसरीन” का इजरा किया गया। इस मौके पर काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।
रिपोर्ट- मोहम्मद असलम, लखीमपुर खीरी।