संपादकीय: सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता – अब भी न चेते तो देर हो जाएगी।
संपादकीय। आज सोशल मीडिया एक ओर जहां सूचना, संवाद और अभिव्यक्ति का प्रभावी माध्यम बन चुका है, वहीं दूसरी ओर यह अश्लीलता, गंदे ट्रेंड्स और मानसिक प्रदूषण का अड्डा भी बनता जा रहा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, और अब रील्स व शॉर्ट्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट की बाढ़ सी आ गई है।
🔍 क्या है अश्लीलता का चेहरा ?
आजकल के ट्रेंड्स में अश्लील कपड़े पहनकर डांस वीडियो, दोहरे अर्थ वाले संवाद, खुलेआम गालियों से भरे शॉर्ट्स और यहां तक कि छोटे बच्चों को भी ऐसे कंटेंट में शामिल किया जा रहा है। कुछ ‘इन्फ्लुएंसर्स’ तो जानबूझकर अश्लीलता फैलाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वायरल होने का सबसे आसान तरीका यही है।
📉 समाज पर असर – संस्कारों की हो रही है हत्या।
सोशल मीडिया का यह गंदा पक्ष न सिर्फ नवजवानों के चरित्र को दूषित कर रहा है, बल्कि बच्चों के मन पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। स्कूलों के बच्चे अब इंटरनेट पर वही खोजते हैं जो उन्हें देखना नहीं चाहिए। इसका सीधा असर उनके बर्ताव, भाषा और सोच पर पड़ रहा है।
⚖️ कानून मौन क्यों है ?
सरकार ने समय-समय पर आईटी नियम बनाए हैं, लेकिन कार्यवाही नाममात्र की होती है। कई बार रिपोर्ट करने के बावजूद, ऐसे कंटेंट हटाए नहीं जाते। क्या सोशल मीडिया कंपनियां केवल पैसा कमाने के लिए हमारी संस्कृति को दांव पर लगा रही हैं?
🙏 समाधान क्या है ?
- सरकार को सख्त साइबर निगरानी तंत्र बनाना होगा।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कड़ी सेंसरशिप और रिपोर्टिंग सिस्टम को मज़बूत करना होगा।
- माता-पिता को बच्चों को तकनीकी आज़ादी के साथ नैतिक दिशा भी देनी होगी।
- स्कूलों और कॉलेजों में डिजिटल संस्कार शिक्षा को जरूरी बनाया जाए।
- और सबसे जरूरी – जन-जागरूकता। समाज को खुद तय करना होगा कि उसे क्या देखना है और क्या नहीं।
📢 अंतिम शब्द: आज अश्लीलता अगर मनोरंजन का नाम बन गई है, तो कल यह पूरे समाज को निगल सकती है।
सोशल मीडिया को जिम्मेदार, नैतिक और संस्कारी बनाए बिना हम डिजिटल इंडिया को “सशक्त भारत” नहीं बना सकते। यह सिर्फ सरकार या कंपनियों की जिम्मेदारी नहीं, हम सबका भी कर्तव्य है।
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